गंगा ने राजा शान्तनु से विवाह क्यों किया?राजा शान्तनु का पूर्व जन्म मे गंगा से क्या संबंध था?
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गंगा ने राजा शान्तनु से विवाह क्यों किया?राजा शान्तनु का पूर्व जन्म मे गंगा से क्या संबंध था? |
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गंगा ने राजा शान्तनु से विवाह क्यों किया?
राजा शान्तनु के पूर्व जन्म मे गंगा से कैसा संबंध था?
गंगा का विवाह धरती पर राजा शान्तनु से क्यों हुआ?
राजा शान्तनु पूर्व जन्म मे कौन थे?
Granth Katha Rahasya
about story
जय श्रीकृष्ण
परम पावनी गंगा जिनका नाम सुनते ही हमारे मन मे एक पवित्रता का एहसास होता है।आज उन्ही परम पावनी गंगा के विषय मे बताने जा रहे है जैसे
मां गंगा किस कारण धरती पर राजा शान्तनु के साथ गृहस्थ जीवन बिताया?
क्यों मां गंगा ने अपने ही गर्भ से उत्पन्न होने वाले अपने सात पुत्रो को अपने ही हाथो अपने जल डुबोकर मार डाला?
इसके साथ ही पुर्व जन्म मे राजा शान्तनु और गंगा आपस में क्या संबंध था?
हम बताएंगे उन सभी गूढ रहस्यों को बने रहीए हमारे साथ।
महाभारत कथा के अनुसार
इक्ष्वाकु वंश मे एक महान प्रतापी राजा थे जिनका नाम महाभिष था। उन्होंने अपने जिवन काल मे बड़े-बड़े यज्ञों को करके इतना पुन्य फल अर्जित किया था की उन्हे स्वर्ग लोक प्राप्त की प्राप्ति हुई और वह स्वर्ग लोक मे देवताओ के साथ निवास करने लगे।
एक दिन स्वर्ग लोक मे सभी देवता और ॠषियों के साथ राजा महाभिष ब्रह्माजी की सेवा में उनके दरबार मे पहुंचे जहां पर पहले से ही गंगाजी उपस्थित थीं।
गंगाजी और राजा महाभिष की नजर दरबार मे जैसे ही मिली दोनो एक दुसरे को देखकर मुग्ध हो गए और उन्हे किसी भी बात का एहसास न रहा।
तभी हवा के एक झोके से गंगा जी का वस्त्र उनके शरीर से खिसक गया। वहां उपस्थित सभी देवता और ऋषि ने गंगा जी की इस अवस्था को देखकर अपनी नजरें झुका ली।
किन्तु राजा महाभिष और गंगा एक दुसरे को देखते हुए इस परिस्थित से बेखबर रहे।
तब परमपिता ब्रह्मा ने दोनो को अमर्यादित अवस्था देखकर क्रोधित होते हुए राजा महाभिष और गंगा को यह श्राप दिया की तुम दोनो ही पृथ्वी पर जन्म लोगे।
इसके साथ ही ब्रम्हा जी ने राजा महाभिष से कहा जिस गंगा को देखकर तुमने देवलोक की मर्यादा भंग कि है तुम्हे इसी गंगा के कारण पृथ्वीलोक मे अत्यंत दुख प्राप्त होगा और जैसे ही तुम गंगा पर क्रोध करोगे इसको श्राप से मुक्ती मिल जायेगी।
ब्रह्माजी के इसी श्राप के कारण राजा महाभिष ने कुरूवंश में राजा प्रतीप के पुत्र शांतनु के रूप में पृथ्वी पर जन्म लिया और हस्तिनापुर के राजा बने।
कुछ काल बाद एक बार राजा शांतनु शिकार खेलते हुए गंगा नदी के तट पर पहुंचे जहां उन्होंने एक परम सुदंर स्त्री को नदी से निकलते हुए देखा। उस परम सुदंरी देखते ही राजा शांतनु उस पर मोहित हो गए और राजा शांतनु ने उस स्त्री से प्रणय निवेदन करते हुए अपनी रानी बनने का आग्रह किया।तब उस स्त्री ने कहा कि मुझे आपकी रानी बनना स्वीकार है किन्तु मेरी यह शर्त है कि मै तब तक
आपके साथ रहूंगी, जब तक आप मुझे किसी बात के लिए रोकेंगे नहीं, न ही मुझसे कोई मेरे द्वारा किए गए कार्य के विषय मे प्रश्न पूछेंगे। अगर आप ऐसा नही करेंगें और आप हमसे कारण जानना चाहेंगे तो मैं तुरंत आपको छोड़कर चली जाऊंगी। राजा शांतनु ने उस सुंदर स्त्री के रूप-सौन्दर्य मे मोहित उसकी यह बात मान ली और उससे विवाह कर लिया।वह स्त्री और कोई नही मां गंगा थी जिसे सब कुछ याद था किन्तु राजा शान्तनु को अपने पुर्व जन्म का कुछ भी याद नही था।
विवाह के बाद राजा शांतनु उस सुंदर स्त्री गंगा के साथ सुखपूर्वक रहने लगे। समय बीतने पर शांतनु के यहां एक एक कर सात पुत्रों ने जन्म लिया, लेकिन सभी पुत्रों को गंगा ने अपने नदी के जल में डाल कर मार डाला।किन्तु शांतनु अपने वचन और स्त्री प्रेम के कारण सब देखकर भी कुछ नहीं कर पाए और ना ही गंगा से कोई प्रश्न कर पाए क्योंकि उन्हें डर था कि यदि मैंने इससे इसका कारण पूछा तो यह परम सुदंरी मुझे छोड़कर चली जाएगी।
किन्तु जब आठवें पुत्र ने गंगा के गर्भ से जन्म लिया और उसे भी जब गंगा अपने जल में डालने लगी तो राजा शांतनु क्रोधित हो कर उसे रोकते हुए पूछा कि तुम एक मां होकर ऐसा क्यों कर रही है? क्यों अपने पुत्रो को अपने ही हाथों से मार रही हो?
तब गंगा ने बताया कि मैं देवनदी गंगा हूं तथा आपके जिन पुत्रों को मैंने नदी में डाला वे सभी वसु थे जिन्हें वशिष्ठ ऋषि ने श्राप दिया था और उन्हें मुक्त करने के लिए ही मैंने उन्हें नदी में प्रवाहित किया इसके साथ ही
गंगा ने राजा शांतनु को उनके पूर्व जन्म की बात याद दिलाते हुए कहा की आज मै अपने श्राप से मुक्त हो गई क्योंकि
आप शर्त तोडते हुए गुस्से से आपने मुझे रोका और प्रश्न किया इसलिए अब मै जा रही हूं और आपके इस पुत्र को समय आने पर लौटा दुंगी ।
ऐसा कहकर गंगा शांतनु के आठवें पुत्र को अपने साथ लेकर चली गई।जो आगे चलकर देवव्रत भिष्म के नाम से जगत मे विख्यात हुआ।
और यही ओ रहस्य था की मां गंगा को ब्रम्हा के श्राप के कारण पृथ्वी पर शांतनु से शादी कर गृहस्थ जीवन जीना पड़ा और ॠषि वशिष्ठ के श्राप से सातो वषुओ को मुक्ती देने के लिए अपने गर्भ से उत्पन्न कर उन्हे जल समाधि दी।
हम अपने अगले भाग मे गंगा और आठो वसु की पुरी कथा के साथ मिलेंगे।
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जय श्रीकृष्ण।
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